मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
I am a postgraduate in Zoology and having been in Medical profession for last 25 years. I am a hobby writer and journalist and published a few books viz., Uttarakhand Travel Journal( Both in Hindi and English languages as eBook editions and are avail with WWW.kdp.amazon.com .I have worked under several qualified MBBS, MD and M.S and BAMS doctors for several years and also run retail and wholesale pharmacy and small nursing home . I served as pharmacy supervisor at Kalptaru Pharmacy , HIHT, Jolley Grant,Dehradun for a brief period. A travel web site i.e., www.uttarakhandexpeditions.com is run by me. I am working on a bilingual medical guide (Hindi-English) book titled as Common Diseases and Treatment will be released shortly for the benefits of doctors, nurses, pharmacists, and medical students of all pathies (Allopathy, Ayurveda, Homeopathy and Unani). The blog is based on the book.

रविवार, 3 नवंबर 2019

Chicken Pox- Vericella

Chicken Pox- Vericella ( छोटी चेचक  या छोटी माता )
   यह विषाणु जनित एक अति संक्रमित छूट (Contact)की बीमारी है व बून्द के रूप (Droplet) संक्रमण के रूप में फैलती है. इसका संक्रमण ऊपरी श्वशन तंत्र के जरिये  होता है. यह एक अति संक्रमित (Highly Infectious) रोग है. अमूमन10 साल से कम उम्र के बच्चों में देखा जाता है व ये सावधानी से देख - रेख करने पर नियंत्रित हो जाता है ;लेकिन वयस्क व्यक्ति को होने पर इससे गंभीर स्थिति उत्पन्न हो सकती है. इन्क्यूबेशन पीरियड 14 से 20 दिनों का हो  सकता है. वायरस   वैरिर्सेल्ला जोस्टर (Varicella zoster) नाम का होता है. 
लक्षण (Symptoms)
तेज बुखार (Hyper Pyrexia) 102-104 Degree F तक हो सकता है. 
शरीर में एक विशेष प्रकार के चकते या रैसेस (rashes) या छोटी छोटी फुंसियां  निकलती है. संक्रमण के दूसरे दिन ही शरीर में धड़ (Trunk) पर छोटी छोटी फुंसियां निकलने लगती है. ये फिर घनी होने लगटती हैा फिर ये फुंसियां चेहरे व अंत में होथ तथा पांवों पर भी नकलने लगती हैं. 
पहले पहल फुंसियां चकते (Macule  ) फिर कुछ घंटों के बाद दानेदार ( Papule) व फिर फफोले(Vascular ) के रूप में और 24 घंटों के अंदर कील मुहांसे (Pustules) के रूप में परिवर्तित होने लगते हैं ा 
तीब्र असहनीय खुजली होना ा बार बार रोगी द्वारा खुजली करने पर शरीर पर स्क्रैच पड़ जाते है.  
 कील मुहांसों के फटने पर सुख जाते हैं व एक पपड़ी की परत( Scab) छोड़ जाते हैं.ा 
स्पॉट अमूमन क्रॉप (crop) के रूप में उभरते है. 
अन्य लक्षणों में नाक से पानी आना व शरीर में दर्द की शिकायत होना ा 
रोग की जटिलताए
  रोग में कभी- कभी जटिलताएँ  भी हो सकती हैं ाPneumonia, Encephalitis, Glomerulonephritis, Myocarditis, osteomyelitis, Septicaemia, त्वचा में जीवाणुओं का संक्रमण ,  इत्यादि ा 
उपचार(  Treatment ) 
रोगी बच्चे को अलग कमरे में रखें ा 
मुँह को साफ़ रखें ा
बच्चे  की साफ़ सफाई का विशेष ध्यान रखें ा Savlon ya Dettol से नहलाएं ा 
कपडे इत्यादि को अच्छी  तरह से धोये ा 
Rest of the treatment must be carried by a qualified person. 

Antiviral drugs like Acyclovir doses adjusted according to weight.
Broad-spectrum antibiotics in suitable doses for secondary infection.
Antihistamines like Avil, Levocetrizine, etc. 
For fever Paracetamol, Combiflam
Syp Multivitamin
Caladry lotion, Acyclovir ointment for local application.


Prevention 
 समय पर टीकाकरण( Vaccination)  करवाये ा






 

शुक्रवार, 1 नवंबर 2019

Swine Flu

Swine Flu स्वाइन फ्लू 
         स्वाइन फ्लू के मामले में एक छोटी सी लापरवाही भी घातक सिद्ध हो सकती है. वायरल होने के कारण इसके प्रारंभिक लक्षण सामान्य मौसमी बीमारियों की तरह होते है. इसकी पहचान सामान्य रूप से नहीं हो पाती है. सामान्यतया जुकाम खांसी के साथ ही बुखार की शिकायत रहना ा सामान्यतया शरीर की प्रतिधिरोधक क्षमता बीमारी से लड़ती है. एलाइजा टेस्ट इसकी सही जाँच है और इसका उपचार आराम से किया जा सकता है. साधारण मास्क इसमें काम नहीं करता है ा इसके लिए एक विशेष मास्क जिसे H1N1 मास्क कहा जाता है, उपयोग में आता है. यही इसके वायरस से बचाव कर सकता है. इसकी लेयर से वायरस फ़्लिटर नहीं हो सकते हैं. दुनिया में 95 प्रतिशत लोग दिन में औसतन चार बार छींकते है. इससे अधिक बार छींकना जुकाम या एलर्जी का संकेत माना जाता है. सामान्य फ्लू और जुकाम दोनों एकही तरह के होते हैं और दोनों ही वायरल इन्फेक्शन की वजह से होते हैं ा सामान्य जुकाम, फ्लू और स्वाइन फ्लू में अंतर करना कठिन होता है. सामान्य जुकाम एक आम बीमारी है और किसी इलाज की आवश्कयता नहीं होती है. फ्लू में और स्वाइन फ्लू में इलाज़ की आवश्यकता होती है. ये ध्यान रखे कि स्वाइन फ्लू एक गंभीर बीमारी है और इसमें समुचित इलाज की जरुरत होती है.स्वाइन फ्लू एक रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट की  वाइरस जनित बीमारी  है. यह बीमारी ठण्ड के मौसम में बरसात के बाद और अक्टूबर माह के अंंतिम सप्ताह या फिर नवम्वर माह के प्रथम सप्ताह में शुरू होने लगती है. बदलते मौसम के साथ जब डेंगू का प्रभाव समाप्त  होने लगता है, तो फिर स्वाइन फ्लू की दस्तक शुरू होने लगती है साथ ही H1N1 Virus तेजी से एक्टिव होने लगता हैा  स्वाइन फ्लू सामान्य इन्फ़्लुएन्ज़ा या कॉमन वायरल फीवर की तरह ही होता है. स्वाइन फ्लू का वायरस या विषाणु चार  प्रकार का होता है. A, B , C and D. ह्यूमन  इन्फ़्लुएन्ज़ा  या फ्लू तीन प्रकार  A ,B व C होता है ा  ह्यूमन इन्फ्लुएंजा A and B सीजनल एपिडेमिक के रूप में हर वर्ष फैलता हैा  A Category में मामूली खांसी व सामान्य बुखार आता है जो कि पेरासिटामोल टेबलेट से ठीक हो जाता है. दूसरी  केटेगरी B में लक्षण  खांसी ,  बलगम बनना, तेज बुखार ,जाड़ा  लगना , नाक से पानी बहना, सिर में दर्द , मांस पेशियों  व बदन दर्द इत्यादि फीवर के लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं.  इसे ब्लड टेस्ट से कन्फर्म किया जाता है कि स्वाइन फ्लू है या नहीं. स्वाइन फ्लू  कन्फर्म होने पर विशेष एंटी वायरल औषधी Tamiflu डॉक्टर की सलाह से दी जाती है. तीसरा प्रकार है c category जो कि  पहले से ही रोग से  पीड़ित व्यक्तियों यथा दिल, किडनी, लिवर, स्वांस , अस्थमा  आदि से को अपने चंगुल में लेता है. यह एक क्रिटिकल स्टेज होती है जिसे हॉस्टिपल में ही उपचार किया जाता है.
स्वस्थ व्यक्तियों में स्वाइन फ्लू  वायरस का अटैक ज्यादा प्रभाव नहीं डालता है और लगभग एक सप्ताह में ही ये डॉर्मेंट स्टेज में चला जाता है. स्वाइन फ्लू का वायरस 6 माह से लेकर 5 साल के बच्चे, गर्भवती महिलाओ, लम्बी या क्रोनिक रोग से ग्रस्त मरीजों आदि को अपने चंगुल में आसानी से ले लेता है.
             हालाँकि स्वाइन फ्लू का वैक्सीन  उपलब्ध है और इसको लगाने के बाद  भी  खतरा 70 प्रतिशत तक ही कम होता है. स्वाइन फ्लू का वायरस सांस के माध्यम से ड्रॉपलेट संक्रमण के द्वारा शरीर में पहुँचता है. इससे बचने के लिये छींकते व खांसते हुए नाक व मुँह को कपडे या फिर विशेष प्रकार के H1N1 Mask का प्रयोग किया जाता है.  सामान्य मास्को से इसका वायरस नहीं रुकता है व शरीर में पहुँच जाता है. सफाई का विशेष ख्याल  की आवश्यकता होती है. छींकने के बाद हाथो को अच्छी तरह से धोना चाहिए।  किसी अच्छे sanitizer का उपयोग करवाये. आपके आस पास कोई छींक रहा हो तो मुँह को ढकने की सलाह दे. बीमार व्यक्ति के संपर्क से दूर रहे, ग्रसित व्यक्ति से हाथ आदि न मिलाये. दूरी बना कर रखें.
          H1N1 इन्फ्लुएंजा या स्वाइन फ्लू वास्तब में चार वायरस या विषाणुओ के संयोजन के कारण  होता है. आमतौर पर इस विषाणु के वाहक सूअर या pig (स्वाइन) होते है. इसीलिए इसे स्वाइन फ्लू कहा जाता है. इसमें म्युटेशन होने से ये अब और घातक  हो गया है. यह सर्दियों में महामारी के रूप में फैलने लगा है. यह एक से दूसरे व्यक्ति में तेजी से फैलता है. इस वायरस का एक अन्य स्ट्रेन बनने से कोई भी इससे अप्रावित नहीं रहा है.सभी लोग इसके संक्रमण के लिए संवेदनशील हैं ा
सावधानी 
          खांसते  और छींकते हुए मुँह और नाक को कपडे या रुमाल  से ढक कर रखने की सलाह दे. सांस लेने मे व ३ -४ दिनों तक बुखार रहने  की शिकायत होती है. हाथ व नाक को साफ़ रखाने की सलाह दे. नियमित अंतराल पर हाथो को धोने की सलाह दे. एल्कोहॉल युक्त sanitizer का उपयोग करने को कहे. अचछे मास्क का उपयोग। यदि टिश्यू पेपर का उपयोग कर रहे है तो उसे उपयोग के बाद डस्टबिन में दाल दे।  बच्चों  में ठण्ड में सांस लेने में दिक्कत होती है ा जकड़न के साथ निमोनिया की शिकायत हो सकती है. इसका बच्चों  में खास ख्याल रखे. एलाइज़ा टेस्ट करवाये.
उपचार 
        रोगी को पूरा आराम करने की सलाह दे. अलग  रूम में रोगी को रखे. डिस्टर्ब न करे.
शरीर में पानी की कमी न होने दे ा नींबू पानी, ग्लूकोस का पानी, लिक्विड ओ आर एस , नारियल पानी, साधारण पानी आदि तरल पदार्थ देते रहने की सलाह दें।  सूप पीने को दे. पर्याप्त हाइड्रेशन का ख्याल रखे। दर्द व बुखार के लिए तब Paracetamol दे.  एलाइजा टेस्ट के बाद ही आवश्यक  एंटी वायरल दवा का प्रयोग किया करे. मरीज़ को हॉस्पिटल में एडमिट करने की सलाह दे.
           
            फ्लू और स्वाइन फ्लू में अंतर जानना जरूरी है. दोनों में ही शुरुवात एक जैसे ही होती है. जिसमे जुकाम या नाक बहना, सिर दर्द, गले में खरास , खांसी, सांस लेने में तक़लीफ़ होना, भूख में कमी, दस्त या उल्टी और बुखार के लक्षण शामिल होते हैं ा
           स्वाइन  फ्लू का संक्रमण तेजी से फैलता है और व्यक्ति तेज बुखार, शरीर दर्द और दूसरे लक्षण महसूस करता है जबकि साधारण फ्लू के लक्षण धीरे- धीरे उभरते हैं ा स्वाइन फ्लू वायरल जनित रोग है जिसे H1N1 वायरस कहा जाता है. यह वायरस सुअरों की स्वांस नली को संक्रमित करता है और फिर यह मनुष्य में संचारित हो जाता है. स्वाइन  का वायरस लगभग 6 फ़ीट की दूरी से दूसरे लोगों को संक्रमित कर सकता है.
बचाव 
           सबसे बेहतरह उपचार  तो इसका बचाव है. इसके लिए सीजनल फ्लू शॉट  यानि कि वैक्सीनेशन किया जा सकता है. यह वैक्सीन दो - तीन तरह के इन्फ्लुएंजा वायरस से बचाव करती है जिसमें H1N1 Virus भी शामिल है. वैक्सीन इंजेक्शन या फिर नाक के स्प्रे के रूप में उपलब्ध है. इसके अलावा बार -बार हाथों को धोना, गंदे हाथों को चेहरे पर न लगाना, दिन में तीन चार बार नमक पानी के गरारे करना, दिन में कम से कम एक बार गुनगुने पानी में  नमक डाल कर नाक को उससे साफ़ करने की सलाह दें ा पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ रोगी को दे. साथ ही विटामिन c युक्त खाद्य पदार्थ का सेवन की राय ा

निदान 
      इसका निदान आरटी पीसीआर तकनीक  द्वारा निदान किया जाता है. इसमें साधारण  रक्त परीक्षण, सीने का एक्सरे , नाक व गले के स्वाब( Nasopharyngeal Swab)का प्रयोगशाला में अध्यन हैा  स्वाब नमूनों का परिक्षण कर 15 से 30 मिनट में यह बताया जा सकता है कि किस प्रकार का फ्लू है. आम तौर पर किसी के 4 या 5 दिनों तक बीमार रहने पर उसका परीक्षण किया  है. मोटे तौर पर 4 या 5 घंटो में स्वाइन फ्लू का पता लगाया जा सकता है.
उपचार  
    स्वाइन फ्लू का इलाज रोगी की चिकत्सीय पृष्ठभूमि और लक्षणों के आधार पर किया जाता है. इसके लिए टेमीफ्लू एंटी वायरल दवा से किया जाता है.
जुकाम , मौसमी  फ्लू और स्वाइन फ्लू में अंतर 
बुखार - जुकाम में बुखार नहीं  है. फ्लू  में बुखार होता है और स्वाइन फ्लू में  80% लोगों  में बुखार  100 degree F से अधिक होता  है /
जुकाम में  खांसी और कफ होता है , मौसमी फ्लू में  खांसी  होती  है. स्वाइन फ्लू में सूखी  खांसी होती  है ा 
जुकाम में हल्का दर्द होता है, फ्लू में सामान्य दर्द रहता है ,  स्वाइन फ्लू में शरीर में तेज  दर्द होता है.
जुकाम में नाक बंद रहना, फ्लू में नाक बहाना , स्वाइन फ्लू में नाज बंद नहीं होती है ा
जुकाम में ठण्ड नहीं लगती है.  , फ्लू में सामान्य ठण्ड लगना, स्वाइन फ्लू में काफी ठडं लगती है.
जुकाम में हल्की थकान , फ्लू में सामान्य थकान , स्वाइन फ्लू में ज्यादा थकान लगती हैा
जुकाम में छीके काफी आती हैं , फ्लू में छीके  आती है.  स्वाइन फ्लू में छींके नहीं आती हैं ा
जुकाम में सर दर्द नहीं होता है. फ्लू में सामान्य  सिऱ दर्द, जबकि स्वाइन फ्लू में तेज सिर दर्द होता है.
जुकाम मे गले में खरास होती है , फ्लू में सामान्य खरास होती है वही स्वाइन फ्लू में खरास नहीं होती है.
जुकाम में सीने में दिक्कत रहती है. फ्लू में असहज रहती है , स्वाइन फ्लू में सीने में काफी दिक्कत रहती है.

मंगलवार, 24 सितंबर 2019

Dengue

">
Dengue ( Break Bone Fever) डेंगी या डेंगू या हड्डी तोड़ बुखार 
     
      यह एक वाइरस या विषाणु जनित रोग हैा इस रोग में एक विशेष प्रकार का बुखार आता है जिसमे कि हड्डी व जोड़ों में तीब्र दर्द विशेष कर रहता हैा बीमारी एपिडेमिक या महामारी के रूप में फैलती हैा इस विषाणु डेंगू के चार प्रकार होते हैं ा Dengue 1, Dengue 2 , Dengue 3 and Dengue 4. चारों ही प्रकार में आपस में काफी समानताये होती हैा  यह बीमारी ट्रॉपिकल क्षेत्रों में एंडेमिक रूप में विध्यमान रहती है. Aedes ageptie (एडिस एजिप्टी) मचछरों की मादा या फीमेल के काटने से होता हैा इन्क्यूबेशन पीरियड (Incubation Period - The duration between infection and apperaace of symptoms of a disease ) अतार्थ  बीमारी के संक्रमण और उसके  लक्षण के प्रकट होने के  काल को कहा जाता हैा Incubation period 3 से14 दिनों का होता है. यदि किसी को एक प्रकार के डेंगू हो और वो रिकवरी कर ले, तो फिर उस व्यक्ति को उसी प्रकार के डेंगू से प्रतिरोधक क्षमता (Immunity)  विकसित हो जाती है ा हालाकि दूसरे  प्रकार डेंगू से पीड़ित हो सकता है अथार्थ एक प्रकार के डेंगू से एक बार ही पीड़ित हो सकता है. ये बीमारी  2 to 7 दिनों तक रहती  है. बीमारी तीन चरणो मे प्रकट होती है.
लक्षण (SYMPTOMS)
                           बीमारी तीन चरणों में दृष्टि गोचर होती हैा 
1.  संक्रमण फैज (Trivasion Phase or Febrile )
     बीमारी  अचानक शुरू होती  हैा तेज बुखार 102 - 105 degree F तक रहता है.  शरीर में जकड़न (Rigor), सारे शरीर में तेज दर्द, सिर दर्द तेज , आँखों में दर्द , आँखे लाल होना, कमर, पावों की पिंडलियों , जोड़- जोड़ व हड्डियों में तेज दर्द , रोगी हिलने डुलने पर भी दर्द की शिकायत करता है. चेहरे, आँखों व सारे शरीर में उत्तेजना (Flushing), भूख ख़त्म होना , शरीर पर रशेस निकलना, ज्यादा गंभीर स्थिति में मरीज दर्द के कारण बिस्तर पकड़ लेता है. इसीलिए इस बुखार को हड्डी तोड़ बुखार भी कहते हैं। जीभ परत चडी ( coated), जी मिचलाना,उलटी आना(Nausea and Vomiting), अमूमन कब्ज (constipation) ,  कभी-कभी कभी नाक से खून निकलना (Epistaxsis), कभी - कभी आहार नाल से खून निकलना( Haemetemesis), नींद न आना , बैचेनी , उदासी , मायूसी (Depression), त्वचा सुखी व गर्म , शुरू में दिल की धड़कन गति तेज व फिर धीमी होना, कभी कभी लिम्फ ग्रंथियोँ मे सूजन आना ा गले में. टॉन्सिल्स बढ़ल सकते हैं.कुछ मरीज खुजली की शिकायत कर सकते है, लिवर बढ़ा हो सकता है. 
2. मध्य चरण  (Interval  or Critical  Phase )
         दूसरे चरण में बुखार का लगातार  रहना व फिर बुखार का कम हो जाना या फिर समाप्त हो जाना. 4 या  5 वे दिन बुखार का टूटना , पसीना आना , नाक से खून निकलना , डायरिया। इस फेज में प्लेटलेट्स का घटना। इस दौरान प्लाज्मा का लीकेज करना , दूसरा चरण क्रिटिकल होता है. इसमें विशेष रोगी का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है.ये स्थिति  एक या दो दिन तक रहतीहै. 
  3.तृतीय चरण  रिकवरी फेज (रिकवरी फेज)
          ये स्थिति 5,6, या 7 दिनों तक लगातार रहती है. दो से तीन दिनों तक रहती है. प्लेटलेट्स का बढ़ना, रोगी ठीक महसूस करता है. मरीज की स्थिति सुधरने लगती है.

Blood Test रक्त की जांच   
  CBC ( Complete Blood Count)             Reference Value
  Hb (Haemoglobin)                                  12-18 gm 
  TLC Total Leucocyte Cout)                       4000-11000
  DLC (Dufferential Leucocyte Count )
  Neutrophil                                              45-75
  Lymphocyte                                            20-45
  Eosinophil                                               1-6
  Monocyte                                                1-10
  Basophil                                                  00-1
   Stab Cells
  RBC ( Red Blood Cell Count)                      4.2-5.4
  HCt(Haemocrit) PVC                                  40-54
  MCV( Mean Corp Volume)                          80-99.9
  MCH( Mean Corp Hb)                                27-31
  MCHC(Mean Corp Hb Conc.)                      33-37
  Platelet Count -1.50Lakh/Cmm                  4 Lac/cum
  Red Cell Distribution Width (RDW)             11.5-14.5
 Dengue Profile 
      खून की जांच करने पर खून में सफ़ेद रक्त ककणिकाओ का घटना Leukopenia, Lymphocytes (Lymphocytopenia), Eosinophilia, प्रमुख रूप से प्लेटलेट्स की संख्या जो कि  150000-450000 तक होती है की संख्या में कमी होन. ये रोग की एक गंभीर अवस्था होती है. 80000 तक और कभी कभी ये बहुत तेजी से घटते है और 30000 या उससे नीचे गिरने पर ही platelets और होल ब्लड चढाने की नौबत आ जाती है.  यदि प्लेटलेट्स  घट रहे है तो उसको आब्जर्व करने की आवश्यकता है। ऐसे में रोगी को हॉस्पिटल में भर्ती करना जरुरी हो जाता है.  प्लेटलेट काउंट हर तीसरे दिन करने की आवश्यकता होती है ताकि मरीज की स्थिति पर नियन्त्र रहे.
Immunology -Serology 
Dengue Virus IgG Antibody
Dengue Virus IgM Antibody
Dengue NS1 -
Platelet Count तीसरे दिन  या चौथे  करवाए 
उपचार (Treatment)
 लक्षण आधारित उपचार (Sypmptomatic Treatment)
 विस्तर में आराम करना 
 रोगी को डार्क रम में रखना 
 शांत वातावरण (Peaceful Atmoshphere ) 
 रोगी को मचछरदानी का उपयोग करवाये 
 शुरुवात में जब बुखार 102 से 105 के बीच हो तो मरीज पर ठंडी पानी की पट्टी रखे( Cold Songing ) ( Cold sponging is the best remedy to lower temperature) . यहाँ तक हो सके किसी भी दवा जैसे Disprin, Cosprin, Brufen, Combiflam, Aceclopara, Diclopara (All NSAID) का उपयोग बिलकुल भी न करे ा बहुत हो तो केबल plain paracetamol 8 hourly दें. कोल्ड स्पोंजिंग से ही तेज बुखार भी उतर जाता है.  क्योंकि डेंगू में रोगी का लिवर भी अफेक्टेड होता है, ऐसे में पेरासिटामोल भी न दे कर बुखार को cold sponging से नियंत्रित किया जा सकता है.
रोगी को अधिक से अधिक मात्रा में पानी दे. 
मौसमी , नारंगी, सेब ,अनार , पपीता का फल व जूस दे। 
नारियल पानी  का सेवन अछछा रहता है. 
बाकी उपचार अपने फिजिशियन पर छोड़ दें ा 
आयुर्वेद में गिलोय घन बटी दो दो गोली तीन बार 
पापाया या पपीते के पत्तों का रस तीन बार 
तुलसी तीन बार 
Platimax Cap/Tab)  TDS
Tab Viatamin C   OD
Tab Folic Acid  OD
     यदि उलटी आदि हो रही फिर आई वी फ्लूइड की जरूरत होती हैा 
यदि मरीज को लगातार हाइड्रेट किया जा रह है और पानी  आदि नियमित व बैलेंस डाइट दी जाये तो डेंगू को आराम से घर पर ही उपचार अपने डॉक्टर की  निगरानी में  किया जा सकता है. यदि रोगी की प्रतिरोधक क्षमता अच्छी है तो बीमारी जल्दी ढीक हो जाती है.  डाइट बैलेंस व सुपाच्य हो. तला , भुना , लाल मिर्च , अचार, भारी गरिष्ठ भोजन आदि न दे.  

डेंगू  बीमारी को पैनिक के रूप में न ले. धीरज रख कर सामान्य रूप से इलाज कर निदान करवाए. 












         

रविवार, 8 सितंबर 2019

Medical Terms Continue

Hb  Haemoglobin   खून की मात्रा
CBC Completer Blood Count or Full Blood Count  सम्पूर्ण खून की गणना
ESR Eosinophil Sedimentation Rate इअसनोफिल का जमने का रेट 
INR     International Normalized Ratio ( Bood clotting test) रक्त के थक्का  या क्लॉट बनने टेस्ट 
WBC   White Blood Cell Count सफेद रुधिर कणिका 
RBC    Red Blood Cell Count लाल रुहिर कणिका 
HCT or PCV Packed Cell Volume   Hematocrit  हेमोक्रिट 
PLT     Platelets प्लेटलेट्स 
RF       Renal Failure  गुर्दा का काम बंद करना
KFT    Kidney Function Test   किडनी फंक्शन टेस्ट
LFT     Liver Function Test  लिवर फंक्शन टेस्ट
UAT    Uric Acid Test  यूरिक एसिड टेस्ट
BS       Bloood Sugar   खून में शुगर की मात्रा
BSF     Blodd Sugar Fasting   भूखे पेट खून मे शुगर की मात्रा
BSPP   Blood Sugar After Meal ( PP means Post Prandial)  खाने के बाद खून में शुगर की मात्रा
Hb A1c Glycated Haemoglobin इस जाँच से ये पता चलता है कि पिछले ३ माह में खून में शुगर की मात्रा का                 अनुपात क्या रहा 5.7 इसकी नार्मल रेंज है

AC - Before  Meal  खाने से पहले
PC - After Meal  खाने के बाद
PO - By Mouth  मुँह के रस्ते से
PR - Per Rectum गुदा के रस्ते से 

शनिवार, 7 सितंबर 2019

Common Medical Terms Continue


RTI      Respiratory Tract Infection     स्वांस नाली का संक्रमण

URTI   Upper Respiratory Tract Infection  ऊपरी स्वांस नाली का संक्रमण
LRTI     - Lower Respiratory Tract Infection  निचली स्वांसनाली का संक्रमण
Bronchitis - फेफड़ों के अंदर स्थित श्लेष्म झिल्ली  के शोथ को श्वसनीशोथ या ब्रोंकाइटिस  कहत है जो          कि  अमू">
मन इन्फेक्शन के कारन होता है. COPD  Chronic Obstrctive Pulmonary Disease  स्वांस की नली में अवरोध पुराना

UTI      Urinary Tract Infection         मूत्र नली का संक्रमण
STD     Sexually Transmitted Disease  सेक्सुलअली ट्रांसमिटेड डिसीज
GTI      Gastro-Intestinal Tract Infection पेट-आंत्र नाली का सक्रमण
TB       Tuberculosis     ट्यूबरक्लोसिस या क्षय रोग
BPH    Benign Prostatic Hyperplasia or Hypertrophy पौरुष ग्रंथिकी सोथ
UC      Ulcerative Colitis   कोलाइटिस पेट की एक बीमारी है जिसमें बड़ी आंत में सूजन आ जाती है।
             इसे अल्सरेटिव कोलाइटिस भी कहा जाता है।
ART     Assisted Reproductive Techniques  are medical procedure used primarily  for infertility vitro fertilization. ऐसी मेडिकल तकनीक है जिसमें निसंतान दम्पति को (आईवीएफ) जिसमें अंडों को शुक्राणु (sperm) से अप्राकृतिक (artificially) तरीके से मिलाया जाता है। यह प्रक्रिया मेडिकल लैब में नियंत्रित परिस्थितियों में की जाती है।
Pre Op.   Pre Operative  ऑपरेशन से पूर्व 
Post Op.  Post Operative ऑपरेशनके बाद
Paed.     Paediatrics बच्चों का
BP         Blood Pressure रक्तचाप
PAH     Pulmonary Arterial Hypertension    फुफ्फुसीय उच्च रक्तचाप
CCF     Congestive Cardiac Failure   कंजेस्टिव हार्ट फेलियर में दिल पूरी तरह काम करना बंदकर देता है

शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

Common Medical Terms


Per OS   By Mouth  मुह द्वारा         
Acute     तुरंत औरअचानक से होने वाला
Chronic  पुराना  या जीर्ण
Local      स्थानीय या किसी बाहरी जगह पर जैसे स्किन
C   With   साथ में 
Supp. Suppository  गुदाद्वार से देनेवाली 
Mg     Milligram  (Unit of Weight)    मिलीग्राम   
Mcg    Microgram (Unit of Weight)   माइक्रो ग्राम
Gm     Gram  (Unit of Weight)  ग्राम
Ml     Mililitre  मिलीलीटर
           BP      British Pharmacopaeia   ब्रिटिश  फ़ार्मकोपिया (के हिसाब से)
 USP   United States Pharmacopeia  अमेरिकाफ़ार्मकोपिया
 IP       Indian Pharmacopaeia   इंडियन फ़ार्मकोपिया
 IU      International Unit  अंतर्राष्ट्रीय यूनिट

GI      Gastro-intestinal    पेट -आंत्र सम्बन्धि
CV     Cardio Vascular    हृदय सम्बन्धि
CVD   Cardio Vsacular Disease  हृदय सम्बन्धी रोग
CNS    Central Nervous System     केंद्रीय तंत्रिका तंत्र
 ENT   Ear,Nose and Throat  कान नाक व गला 
BM    Bone Marrow  अस्थिमज्जा